जैम धर्म के सिद्धांत या पांच महाव्रत ethics of Jainism
जैन धर्म क्या हैं ?
जैन धर्म विश्व के सबसे प्राचीन सनातन धर्म हैं । ये श्रमण परंपरा से निकला या मानने वाला हैं। जैन धर्म के अति प्राचीन होने के साक्ष्य अ-जैन साहित्य तथा वैदिक साहित्य में मिलता हैं।
जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव जी हुए हैं और हमारे देश का नाम भारत देश इनके प्रथम पुत्र चक्रवती सम्राट भरत से ही पड़ा हैं। अनेक ग्रंथ तथा हिन्दू पुराणों से इसकी पुष्टि की जा सकती हैं। हिन्दू ग्रन्थ, स्कन्द पुराण (अध्याय ३७) के अनुसार "ऋषभदेव नाभिराज के पुत्र थे, ऋषभ के पुत्र भरत थे, और इनके ही नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा"।
इसी तरह की बात विष्णुपुराण (2,1,31), वायुपुराण (33,52), लिंगपुरान (1,47,23), ब्रह्माण्डपुराण (14,5,62), अग्निपुराण (107,11–12), और मार्कण्डेय पुराण (50,41), में भी आयी है।
जैन शब्द 'जिन' से बना हैं जिसका अर्थ हुआ जितने वाला अर्थात वह व्यक्ति जिसने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया, अपने तन को जीत लिया ओर जो जिन के अनुनायी हैं वो जैन कहलाते हैं। जिस व्यक्ति ने अपनी पांचो इन्द्रियो को जीत लिया वो जिनेन्द्र हैं यानी अरिहंत हैं।
जैन धर्म के पांच मूलभूत सिद्धांतो में अहिँसा महत्वपूर्ण हैं । अहिँसा का अर्थ हुआ हमे अपने स्वयं के द्वारा किसी ओर की हिंसा न हो।
जैन धर्म के सिद्धांत अथवा पांच महाव्रत हैं।
1. अहिँसा ( non violence)
जैन धर्म का अतिमहत्वपूर्ण सिद्धांत हैं । इस संसार मे प्रत्येक प्राणी जीवन जीने के लिए ही पैदा होता हैं यदि हम किसी को प्राण दे नही सकते तो उसके प्राण हारने के कोई अधिकार नही हैं। सभी प्राणियो को अपना संपूर्ण जीवन जीने का अधिकार हैं इसलिए जैन धर्म मे अहिंसा को सबसे ऊपर रखा गया हैं।
2. सत्य (truth)
ये सभी धर्मों की मूलभूत बातो में से एक हैं सत्य के मार्ग पर चलो। ये सभी जानते हैं कि जूठ को छिपाने के लिए हजार जूठ बोलने होते हैं इसलिए सत्य का सामना सिर्फ एक बार करना हैं फिर आप स्वतंत्र हैं।।
जो वस्तु अपनी नही हैं उसे पाने की इच्छा न करना अथवा जब तक कोई वस्तु आपको न दी जाए तब तक ग्रहण न करना।
4. अपरिग्रह (non possession)
अपरिग्रह को अंग्रेज़ी में नॉन अटैचमेंट (Non Attachment) कहते हैं। इसका अर्थ हुआ आपको किसी भी व्यक्ति, वस्तु तथा मन से किसी ओर चीज़ के लिए लोभ, मोह और लगाव नही रखना।
5. ब्रह्मचर्य
ब्रह्मचर्य का अर्थ हुआ संयमित जीवन जीना। अपने अंदर के ब्रह्म को पहचानना तथा आत्मा की शुद्धि करना।
जैन धर्म का प्रमुख मंत्र हैं नवकार या णमोकार महामन्त्र। ये अनादि मूलमंत्र हैं तो प्राकृत भाषा में हैं।
णमो अरिहंताणं।
णमो सिद्धाणं।
णमो आइरियाणं।
णमो उवज्झायाणं।
णमो लोए सव्वसाहूणं॥
णमो का अर्थ होता हैं नमस्कार करना। इसमे अरिहंतो को नमस्कार हैं, सिद्धो को नमस्कार, आचार्यो को नमस्कार हैं, उपाध्याय को नमस्कार हैं तथा इस लोक में सर्व साधुओ को नमस्कार हैं।
नवकार या णमोकार मंत्र की खूबी या विशेषता ये हैं कि इसमें किसी व्यक्ति विशेष को नमन नही किया जाता हैं बल्कि इस संसार या लोक के सभी केवल्य, सिद्ध, आचार्य और साधु सभी को नमन किया गया हैं।
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