अनेकांतवाद और syadvada के बीच का अंतर
अनेकान्तवाद ओर स्यादवाद दोनों एक से मालूम पड़ते हैं और लगभग सभी जगह इसको सप्तभंगिनिय सिद्धांत से समझाया जाता हैं। लेकिन इन दोनों में एक मूल अंतर हैं।
स्यादवाद में जहाँ हमें वस्तु के एक नय, एक दृष्टिकोण विशेष की जानकारी होती हैं और उसी दृष्टिकोण से हम वस्तु को देखते हैं और ये एक अधूरा सत्य है जिसे हम स्यात कहते हैं ओर यही एक अपूर्ण जानकारी को एक दृष्टिकोण से यदि सत्य मान लिया जाए तो इसे स्यात शब्द लगा कर कहा जा सकता हैं जिसका मतलब हुआ यह जानकारी एक दृष्टिकोण से पूर्णतः सत्य प्रतीत होती हैं लेकिन सभी दृष्टिकोण से पूर्णतः सत्य हो यह नही कहा जा सकता।
वही अनेकांतवाद का अर्थ हुआ हमे किसी भी वस्तु की पूर्णतः जानकारी नही हैं ओर हम किसी एक निष्कर्ष पर नही पहुँच सकते। वस्तु को अनंत दृष्टिकोण से देखा जा सकता हैं लेकिन एक निष्कर्ष पर पहुचना मुमकिन नही हैं। जैसा कि सप्तभंगिनिय सिद्धांत में 7 अंधे व्यक्ति हाथी के अलग अलग अंगों को स्पर्श करके ये सोचता हैं कि हाथी एक रस्सी के जैसा हैं, खंभे जैसा हैं, दीवार जैसा हैं, भाले जैसा हैं आदि आदि लेकिन वो सत्य से अनभिज्ञ हैं।
यहां अनेकान्तवाद ओर syadvad के बीच के अंतर को इस तरह समझा जा सकता हैं जैसे कि अनेकान्तवाद में एक हाथी जिसके बारे में छह अंधे व्यक्तिओ को कोई जानकारी नही हैं लेकिन वो सभी छह व्यक्ति हाथी के किसी एक अंग को ही हाथी समझ बैठे हैं। जैसे कि जिसने हाथी की सूंड को पकड़ा हैं उसे लगता हैं कि हाथी एक बड़ा सा सांप या अजगर हैं। उस अंधे व्यक्ति के दृष्टिकोण से ये बात बिल्कुल सत्य हैं लेकिन पूर्णतः सत्य नही हैं की हाथी एक सांप हैं।
चूंकि उस अंधे व्यक्ति के नय से एक दृष्टिकोण से ये उचित मालूम पड़ती है इसलिए इसे स्यात शब्द लगा कर कहा जा सकता कि ये सत्य हैं लेकिन पूर्णतः सत्य नही हैं।
हर व्यक्ति की अपनी एक सीमा होता हैं और वो इसी सीमित दृष्टिकोण से ही देख सकता हैं। अनंत ज्ञान जिसमे सभी दृष्टिकोण से वस्तु को देखना एक सामान्य व्यक्ति के लिए संभव नही हैं। जो जिन हैं, जिनेन्द्र हैं, केवली हैं वही व्यक्ति सर्वज्ञ हैं और सभी दृष्टिकोण से वस्तु धर्म को जान सकता हैं।
अनेकान्तवाद के सिद्धांत को हम एक ओर उदाहरण से समझ सकते हैं। मान लीजिये कोई मेज़ हैं। एक व्यक्ति उसे देख कर कहेगा कि ये खूबसूरत मेज़ हैं दूसरा व्यक्ति लकड़ी का व्यापारी कहेगा कि बहुत ही अच्छी लकड़ी हैं और टिकाऊ हैं उसे मेज़ से कोई मतलब नही हैं। यहां पर दोनों का दृष्टिकोण अलग हैं। अब ये दोनों अलग अलग दृष्टिकोण होने से आपस मे विवाद कर सकते हैं लेकिन दोनों एक नतीजे पर नही पहुंच सकते हैं।
उसी प्रकार यदि टेबल पर एक ग्लास पानी हैं एक व्यक्ति बोलेगा की ग्लास आधा भरा हैं, दूसरा बोलेगा की ग्लास आधा खाली हैं, तीसरा व्यक्ति बोलेगा ये एक कांच के गिलास हैं और पानी से भरा हैं, चौथा प्यासा व्यक्ति बोलेगा मुझे पानी पीना हैं तो यहां सभी व्यक्ति की दृष्टी अलग हैं, सभी ने अपनी सीमा में ही सोचा हैं। सभी की दृष्टी अनेकांत हैं।
यदि हम पहले व्यक्ति को ले जिसने सोचा कि ग्लास आधा भरा हैं तो वो भी अपनी सोच से सही हैं और ये उसका नय है लेकिन पूर्णतः सत्य नही हैं हमे दूसरे व्यक्ति की दृष्टिकोण को भी सम्मान देना होगा । पूर्णतः समग्र ज्ञान ना होना ही अनेकांतवाद है और किसी एक दृष्टिकोण से किसी वस्तु को देखना ओर सही मानना स्यादवाद हैं।
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