अपरिग्रह क्या हैं What is non attachment
अपरिग्रह (Aparigraha - non possession)
अपरिग्रह का शाब्दिक अर्थ हैं किसी से कुछ ग्रहण न करना, जरूरत से ज्यादा वस्तु का संचय न करना या जरूरत से अधिक वस्तुओं का त्याग करना। ओर अंग्रेजी में इसे Non Attachment कहते हैं मतलब वस्तुओ से attachment या लगाव, मोह नही रखना हैं।
यह जैन धर्म के मूल सिद्धांतों में से एक सिद्धांत हैं और जैनधर्म में इस सिद्धांत का एक विशेष अर्थ हैं। इसका अर्थ हुआ टूटना, यानी कि हमे किसी भी वस्तु से लगाव नही रखना उससे परिग्रह नही रखना उस वस्तु या व्यक्ति से जुड़ना नही हैं।
जैसा कि इसका शाब्दिक अर्थ हैं "आवश्यकता से अधिक वस्तु का संचय न करना " लेकिन इसका जैन धर्म के संदर्भ में ये सही अर्थ नही हो सकता। इसका सही अर्थ ये हैं कि किसी भी वस्तु या व्यक्ति या कोई भी सांसारिक वस्तुओं से टूटना हैं। यदि आपको किसी वस्तु से प्रेम हैंं, लगाव हैं उसके खो जाने से दुःख होता हैं तो इसका मतलब हैंं आपको इससे परिग्रह हैं ओर यही परिग्रह दुःख का कारण हैं।
यदि इसका अर्थ ये मान लिया जाए कि आवश्यकता से अधिक वस्तु का संचय न करना तो इसका मतलब हुआ जो आपके पास आवश्यक वस्तु है उसी से आपको परिग्रह हो जाएगा और उसमें से किसी एक वस्तु के जाने से भी आपको दुख होगा तो फिर ये अपरिग्रह का सही अर्थ कभी नही ही सकता।
मेरा मानना ये हैं आपके पास कितना भी धन या सम्पति हैं, ऐश्वर्य हैं लेकिन आपको इसके जाने का कोई गम या दुःख नही हैं तो फिर कोई चिंता की बात नही लेकिन यहां प्रश्न उठता हैं कि यदि आपको परिग्रह नही हैं तो धन का संचय क्यों किया। मैं यहां कहूंगा धन का संचय आपने अपने सुख के लिए, ऐश्वर्य के लिए ओर आराम की जिंदगी जीने के लिए किया हैं। आप जानते हैं पैसा कमाना ओर खर्च करना और दान देना लेकिन यदि आप इससे परीग्रह रखते हैं, उसके जाने से दर्द होता हैं, दान देने से घबराते हैं तो फिर आप अपरिग्रह का कभी पालन नही कर सकते।
भगवान महावीर भी राजा के पुत्र थे, राजकुमार थे लेकिन उन्होंने परिग्रह को त्याग और केवल्य ज्ञान की प्राप्ति के लिए सांसारिक जीवन को छोड़ा था।
जैन धर्म के मूलभूत सिद्धांत में से सबसे महत्वपूर्ण हैं अहिँसा लेकिन इस सांसारिक जीवन यदि सुखी रहना हैं तो अपरिग्रह का सिद्धांत भी अति महत्वपूर्ण हैं। अपरिग्रह के सिद्धांत से जुड़ने का अर्थ हुआ मोह को त्यागना। यदि किसी भी व्यक्ति को इस संसार की किसी भी वस्तु या व्यक्ति से मोह नही हैं तो ये सुखी रहने का सबसे अच्छा कारण हो सकता हैं।
यह सुखी रहने का तात्पर्य हैं आपको चिंता से मुक्ति मिलेगी। उदाहरण के तौर पर आपके पास मोबाइल फ़ोन हैं और वो आपको अतिप्रिय हैं यदि वो अचानक गिर जाए और टूट जाए तो ये आपके लिए दुःख का कारण बन गया लेकिन यदि आपको इससे मोह नही हैं और कोई ऐसी चिंता भी नही तो आप सोचेंगे कि टूट गया तो कोई नही नया ले आएंगे। इसका मतलब हुआ आप अपरिग्रह के सिद्धांत को follow करते हैं।
आपने देखा होगा दिगम्बर जैन मुनि नग्न रहते हैं उन्हें इस संसार की किसी भी वस्तु या व्यक्ति से मोह नही। उन्होंने इसी अपरिग्रह के सिद्धांत की पालना की हैं और अपने परिवार को छोड़ा हैं।
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