बुजुर्गों की दयनीय स्थिति के कारण


जैसा कि हम सभी जानते हैं हमारे बुजुर्ग समाज मे एक विशिष्ट स्थान रखते हैं और इनकी देखभाल और सम्मान देना हमारा नैतिक कर्तव्य भी हैं लेकिन फिर भी हमारा समाज कही न कही इसके लिए दोषी हैं। हम वो सम्मान और इज़्ज़त हमारे वरिष्ठ नागरिकों को नही दे पाते है और आधुनिक समाज मे वृद्धो की स्थिति विशेष ठीक नही हैं। 

लेकिन यहां बात ये भी हैं कि वृद्ध जन अपने ही घर मे सम्मान और इज्जत की जिंदगी नही गुजर बसर कर पा रहा हैं। बुज़ुर्ग अपने ही घर मे उपेक्षित ओर अकेलापन महसूस करता हैं उनकी इस दयनीय स्थिति का जिम्मेदार कौन हैं ? इसके क्या कारण हैं ??

1.  एकाकी परिवार का होना
आधुनिक युग मे ये एक समस्या हो सकती हैं जहाँ बीटा ओर बहु दोनों नॉकरी करने वाले होते हैं और जॉब से घर आना और सपने काम मे व्यस्त हो जाना इस वजह से वो अपने माता पिता एवम वरिष्ठ व्यक्ति के साथ समय नही बिता पाते। उसके अलावा बच्चे भी अपनी पढ़ाई की वजह से व्यस्त हो जाते हैं। 

ये कोई एक विशेष कारण नही हो सकता। बुजुर्ग आने दिनचर्या ओर धर्म कार्य मे अपने को व्यस्त रख सकते हैं और साथ ही साथ बेटे एवम बहुओ को भी समय देना चाहिए। बुजुर्गों को बुरा तब लगता हैं जब उनसे कोई सलाह मशवरा नही लिया जाता इसलिए घर पर जब भी कोई छोटे बड़े त्योहार या कार्यक्रम होतो उनको जरूर पूछना चाहिए और सलाह को मानना चाहिए। 


2.  परिवार का विस्थापित होना
मुझे यह एक मुख्य कारण लगता हैं जब बुजुर्गों को अपने जन्म और कर्म भूमि से अन्यत्र विस्थापित होना पडता हैं। बेटा पढ़ लिख कर नॉकरी की तलाश में अपने गांव शहर को छोड़ कर जब अन्यत्र विस्थापित हो जाता हैं तब वो अपने माता पिता को भी साथ रखना पसंद करता हैं ऐसी स्थिति में बुजुर्गों का समय व्यतीत करना बहुत ही मुश्किल हो जाता हैं। 

सबसे बड़ी बात तो बुजुर्ग इस उम्र में अपने गांव शहर को कभी छोड़ना नही चाहता ओर जब मजबूरी से छोड़ना भी पड़ता हैं तो उन्हें बहुत दुख होता हैं। उनको हमेशा यही लगता हैं कि उनका वो पुराना शहर गांव ज्यादा अच्छा था। मैंने अपनी जिंदगी में ऐसे बहुत से बुजुर्ग देखे हैं जिन्हें विस्थापित होना पड़ा और फिर उनकी जिंदगी को भी। बेटा बहु कितना कुछ भी कर ले लेकिन उनके वो पुराने दिन ओर गांव की जिंदगी नही दे सकते। 

3.   जैसे को तैसा संभव हैं
यहाँ मेरे कहने का मतलब हैं जैसा आज के बुजुर्ग ने अपने माता पिता और दादा दादी के साथ जैसा व्यवहार किया होगा वैसा ही उनकी संतान भी सीखती हैं ओर करती हैं। 

यह बहुत महत्पूर्ण हैं कि आप अपने बच्चो के सामने अपने बुजुर्ग माता पिता के साथ कैसा व्यवहार करते हैं बच्चे वो ही सिख लेते हैं और बड़े होकर वही आपके साथ करते हैं। यदि आप अपने से बड़ो की बातों को सुनते ओर मानते हैं तो ये उम्मीद की जाती हैं कि आपके बच्चे भी आज्ञाकारी होंगे। बच्चो को दोष देना की आज की पीढ़ी खराब हैं, मां बाप की नही सुनती, अपना मन मर्ज़ी करती हैं ये सब गलत ओर फ़िज़ूल की बातें हैं। आपने आपके मां बाप की नही सुनी तो अब आपके बच्चे आपकी कहाँ सुनने वाले हैं। 


4.  क्या बुजुर्ग स्वयं जिम्मेदार हैं ?
ये मेरी अपनी राय हैं कि कहीं ना कहीं इसमे थोड़ी जिम्मेदारी की कमी कल के माता पिता जो आज बुजुर्ग हैं उनकी भी हैं। शायद बच्चो के प्रति उनकी महत्वकांशा आज उनकी दयनीय स्थिति का कारण हैं। 

ऐसा लिखने से पहले मैंने काफी सोचा हैं लेकिन फिर भी मुझे ऐसा लगता हैं कि इनकी बच्चो से अत्यधिक महत्वकांशा, समाज मे सम्मान और इज्ज़त के लिए इन्होंने अपने बच्चो को अपने से दूर रखा, ऊंची से ऊंची पढ़ाई करवाई और दुःख तो इस बात का की उन्होंने पढ़ने और नॉकरी पेशे के लिए बच्चो को विदेश भी भेजा । ऐसा इसलिए किया कि वो सम्मान से कह सके कि देखो मेरा बेटा ये पढ़ाई कर रहा हैं, विदेश में नॉकरी कर रहा हैं आदि आदि। 

आज हम सब जानते हैं कि जिनके बच्चे विदेश में रहते हैं उनके पीछे माता पिता की हालत क्या होती हैं। बहुत कब बच्चे हैं जो अपने माँ बाप को साथ ले जाते हैं और ले भी जाएंगे तो कितने खुश रहेंगे ??. 

हम आये दिन अखबारों में खबर पढ़ते रहते हैं । अगस्त 2017 में मुम्बई में एक खबर सामने आई अमेरिका से वापस आया बेटा, घर में मिला मां का कंकाल. ऐसा क्यो हुआ ? 

क्योंकि बेटा अपनी खुद की फैमिली बीवी ओर बच्चो के साथ अमेरिका रहता था और माता पिता यहां अकेले मुम्बई में ओर जब 2013 में पिता की मृत्यु हो गई तो वो अकेली हो गई और बेटा उसको आने साथ अमेरिका नही ले गया। मां अकेलेपन से परेशान थी, वृद्धाश्रम जाना चाहती थी लेकिन उसकी बेटे ने नही सुनी। और मुम्बई आया भी तो आने 7-8 करोड़ के बँगले को बेचने के लिए। 

बुजुर्गों को दोष देना उचित नही लेकिन शायद इसमे कोई गलती तो जरूर हैं। माता पिता हमेशा अपनी संतान के लिए अच्छा ही सोचती हैं और खुद दुख और परेशानी उठा लेंगे लेकिन बच्चो को आंच न आने देंगे। लेकिन परवरिश में कोई कमी बुढ़ापे में दुःख का कारण बन जाती हैं। 

ये मेरा अपना एक दृष्टिकोण को हैं। ये एक वाद विवाद का विषय हो सकता हैं। व्यक्ति सर्वज्ञ नही है और हम सिर्फ एक ही दृष्टिकोण से देख सकते हैं ये अनेकान्तवाद ओर स्यादवाद का सिद्धांत हमे सिखाता हैं। 


5.   बुजुर्गों के व्यवहार में बदलाव
उम्र के साथ साथ व्यक्ति में तजुर्बा भी आता हैं लेकिन साथ ही साथ काफी सारे बदलाव भी ले आता हैं ऐसी स्थिति में उनके व्यवहार का बदलना मुमकिन हैं। बात बात में गुस्सा करना, चीज़ों को रख कर भूल जाना, एक बात पर बार बार रियेक्ट करना इत्यादि। 

ऐसी स्थिति में परिवार के अन्य सदस्यों की जिम्मेदारी बनती हैं कि वो उनका ख़याल रखे, उनके साथ दोस्ताना व्यवहार रखे लेकिन इसमे बहुत धैर्य और सामर्थ्य चाहिए जो सभी के पास नही हैं। 

6.   बहु को बेटी का दर्जा न दे पाना
ये कहना थोड़ा सा अनुचित लगता हैं लेकिन कई मोको पर ऐसा संभव हैं। लेकिन मैंने अपने जीवन मे देखा हैं कि सास अपनी बहू को बेटी से भी बढ़कर मानती हैं और प्यार करती हैं इसलिए ये कहना थोड़ा अनुचित लगता हैं कि बहु को बेटी का दर्जा न दे पाना। 

लेकिन सभी घरों में हो सकता हैं ऐसा न हो। जब घर मे एक बहु हैं तो सास बहू खुश रहेगी लेकिन यदि घर मे दूसरे बेटे की बहू आती हैं या तीसरी बहु आने के बाद यदि बहुओ के काम काज ओर व्यवहार में फर्क करने लग जाने से समस्या बढ़ सकती हैं। यह पर सास को घर को जोड़ के रखना होगा, समान व्यवहार करना होगा नही तो बुढ़ापे में तीन तीन बहु बेटे के बावजूद भी माता पिता को अकेले रहना पड़ सकता हैं। 


बुजुर्गों की दयनीय स्थिति का इनमे से कोई भी कारण हो लेकिन सभ्य और शिक्षित समाज में रहते हुए हमें अपने माता पिता और बुजुर्गों की सेवा और सम्मान करना ही होगा। हमे समाज को प्रेरित करना होगा। माँ पिता हमारे लिए सबकुछ हैं वो हैं तो जीवन हैं ।  इनकी सेवा करना हमारा नैतिक कर्तव्य ओर धर्म भी हैं। 

मुजे उम्मीद हैं इस आर्टिकल से आपको बहुत कुछ जानने मिला होगा। ये लेखक की निजी राय हैं। अपनी प्रतिक्रिया कमेंट बॉक्स में जरूर करे। 

धन्यवाद। 


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