आधुनिक समाज मे बुजुर्गों की दयनीय स्थिति


बुजुर्ग याने वरिष्ट व्यक्ति अंग्रेजी में कहा जाए तो Old and senior citizen. बुुज़ुर्ग व्यक्ति समाज मे हमेशा से सम्मानीय होता हैं और हर जगह इज्जत भी दी जाती है। जमाना कैसा भी हो पुराना हो या आधुनिक व्यक्ति अपने से सीनियर या वरिष्ट व्यक्ति का हमेशा सम्मान और इज़्ज़त करता हैं और हमारी संस्कृति भी यही सिखाती हैं। 

लेकिन ऐसा माना जाने लगा हैं कि आज के आधुनिक जमाने मे बुजुर्गों की स्थिति अच्छी नही हैं। बुजुर्ग अपने आप को समाज से उपेक्षित महसूस करता हैं। हम पुराने जमाने की बात नही कर सकते क्योंकि हमने उसे देखा नही लेकिन मेरा मानना हैं जमाना कोइ सा भी रहा हो बुजुर्गों की स्तिथि लगभग ऐसी ही हुई होगी और मुझे ऐसा लगता हैं कि आज की वर्तमान स्तिथि ज्यादा अच्छी है। 

आज का युवा समझदार हैं, पढ़ा लिखा हैं, रिश्तों को निभाना भी जानता हैं। उसके अलावा आज के आधुनिक जमाने मे बहुत सी सुख और सुविधा भी उपलब्ध हैं। बुजुर्ग के इलाज के लिए अच्छे हॉस्पिटल उपलब्ध हैं, दवाइया सुगमता से मिल रही हैं। ट्रांसपोर्ट भी उपलब्ध हैं। अगर देखा जाए तो आज का युग ओर जमाना उस पुराने अंधकार से तो बहुत अच्छा हैं। आज से ही कुछ साल पीछे चले जाओ सबकुछ पता चल जाएगा। पर्याप्त बिजली नही थी, यातायात की सुगमता नही थी, कॉम्युनिकेश के साधन कितने थे ? 


यदि भौतिक सुख सुविधा की बात की जाए तो सबकुछ उपलब्ध हैं और अच्छी जिंदगी जीने के लिए पर्याप्त भी हैं। लेकिन बुजुर्ग व्यक्ति की अपेक्षाएं ये नही होता। 

बुजुर्ग व्यक्ति अपने इस पड़ाव में क्या चाहता हैं ?? वो चाहता हैं अपना पूरा परिवार अपने पास हो। दो वक्त की रोटी और थोड़ी बहुत दवाई के अलावा उन्हें किसी भौतिक सुख सुविधा की अपेक्षा नही रहती । वो चाहते हैं अपने बच्चो के साथ समय गुजरना, नाते पोते के साथ बाते करना और खेलना उनके साथ समय गुजरना।

घर मे बुजुर्ग व्यक्ति की अपेक्षा रहती हैं कि उसके बेटे, बहु उसकी सारी बाते सुने ओर माने। वो जैसा कहे वैसा करे लेकिन हम सभी जानते हैं कि ऐसा हर दम संभव नही हो पाता। जब सास बहू बनकर इस घर मे आयी थी तो शायद वो भी अपनी सास की नही सुनती थी और अब वो सास बन गई तो उसकी बहु कहा सुनने वाली हैं। ओर ये सिलसिला चलता रहेगा। 

आज का बुजुर्ग जब पहले जवान था तो आने बाप दादा की नही सुनता था और आज उसके बेटे और पोते नही सुनते। इसमे बुराई कहा हैं। ये तो प्रकृति का नियम हैं कि व्यक्ति हमेशा अपनी खुद की ही सुनता ओर करता हैं। जमाना कैसा भी हो व्यक्ति पहले खुद की ही सुनता हैं। 

लेकिन अपने माता पीता की सेवा करना हर व्यक्ति का नैतिक कर्तव्य होता हैं और उसकी जिम्मेदारी भी हैं। कुछ अपवाद को छोड़ दिया जाए तो आज का युवा जानता और समझता हैं और अपने माता पिता और दादा दादी को इज़्ज़त ओर सम्मान भी देता हैं। क्योंकि आज का युवा इस बात को अच्छे से जनता हैं कि आज जो जवान हैं एक दिन बूढा जरूर होगा ओर उसको भी यही व्यवहार मिलेगा जैसा वो आज बुजुर्गों ओर अपने माता पिता के साथ करता हैं। 


समाज मे बुजुर्गों का स्थान 
जब बात समाज में बुजुर्गों के स्थान की जाए तो वो आधुनिक युग मे हमेशा से ही दिया हैं ओर आगे भी मिलता रहेगा लेकिन एक बात आज के युवा को अच्छे से समझनी होगी कि ज्ञान आज के जमाने मे बड़ी तेजी से विकसित हो रहा हैं और जब कल को वो बूढ़े होंगे तो इस बात की अपेक्षा न रखे कि उसका बेटा ओर पोते उसकी बात को सुनेगा। 

जो ज्ञान पहले वर्षो से प्राप्त किया जाता था ओर पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता था। जो पिता ने सीखा वो उसने बेटे को भी सिखाया ओर उसने अपने बेटे को भी तब भी ज्ञान में इतना विकास ना हो पाता था लेकिन आज के युग मे खोजे, अविष्कार इतने तेजी से हो रहे हैं कि जो ज्ञान पहले 100 साल में विकसित होता था वो अब 5 से 10 साल ओर आने वाले वक्त में कुछ महीनों में होने लगेगा। बहुत से अविष्कार ओर खोजे तो किताबो में छपते ही नही क्योंकि जब तक वो किताबो में छपेगी ओर बाजार में आएगी तब तक नई खोज विकसित हो जाती हैं। 

इसलिए वर्तमान ओर भविष्य में बुजुर्गों को इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि आने वाली पीढ़ी उसकी बातें नही सुनने वाली हैं। नई पीढ़ी की सोच नई हैं ओर उन्हें भी इसी सोच के साथ आगे बढ़ना होगा। वो आने विचार और ज्ञान को नई पीढ़ी पर नही थोप सकता और यही कारण उसके दुःखी होने का हो सकता हैं। ओर राग अलापते रहेंगे की आज की युवा पीढ़ी हमारी सुनती नही हैं। 


एकल परिवारो में बुजुर्गों की स्थिति
वर्तमान में एकल परिवार एक मजबूरी हो गई हैं नही चाहते हुए भी व्यक्ति को रोजगार के लिए अपने जन्म स्थान को छोड़ना ही पड़ता हैं। ऐसी स्तिथि में बुजुर्गों को संयुक्त परिवार में न रह कर अपने बेटों के साथ विस्थापित होना पड़ता हैं। 

ऐसी स्तिथि में जब बेटा ओर बहु दोनों नॉकरी पर चले जाते हैं, बच्चे स्कूल चले जाते हैं तो घर के बुजुर्ग को अकेलेपन का अहसास होता हैं। चूंकि वो नई जगह पर होते हैं तो समय बिताने के लिए भी उनके पुराने दोस्त साथ नही होते हैं। बहु बेटे नॉकरी से घर आते हैं, खाना खाते हैं, बच्चो की पढ़ाई करते हैं ओर जल्दी सोना भी होता हैं अगले दिन की नॉकरी के लिए ऐसी स्तिथि में वो आने माँ बाप के साथ पर्याप्त समय नही दे पाते जिससे कि वो उपेक्षित ओर अकेलापन महसूस करते हैं। 

ऐसी स्तिथि में घर के बुजुर्ग व्यक्तिओ के साथ समय बिताना चाहिए, उनके तबियत की खबर लेनी चाहिए और उनसे उनके मतलब की बात भी करनी चाहिए जिससे वो खुश रह सके। और बुजुर्ग व्यक्ति को भी जमाने को समझना होगा और उसी अनुसार अपने दिनचर्या को बनाना चाहिए। 





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