जैन और हिन्दू धर्म में संबंध या अंतर

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जैन धर्म और हिन्दू धर्म के संबंध और अन्तर की चर्चा करना ही अनुचित हैं। ये चर्चा का विषय कभी हो नही सकता लेकिन आधुनिक युग मे जहा व्यक्ति हर दृष्टिकोण से देखता हैं और चूंकि बहुत से धर्मो से तुलना होने लगी हैं तो आमतौर पर लोग हिन्दू और जैन धर्म मे भी अन्तर ओर संबंध खोंजने लग गए हैं। इन दोनों को अलग रख के देखा नही जा सकता। कोई भी व्यक्ति कभी भी ये नही कह सकता कि कोनसा धर्म पुराना हैं।

जैन धर्म और हिन्दू धर्म एक ही पेड़ की दो शाखा हैं। दोनों ही अनादि, अनंत, सनातन धर्म हैं। ये दोनों एक दूसरे में अंतर्निहित हैं। इनके सिद्धांत जरूर अलग अलग हैं लेकिन गहराई से यदि अध्यन किया जाए तो ये अन्तर विलुप्त हो जाता हैं। 

चूंकि ये दोनो धर्म भारत भूमि से ही शुरू हुए हैं इसलिए इनकी मान्यताएं ओर संस्कृति भी एक जैसी हैं। पूजा पद्धिति में जरूर भिन्नताएं हैं लेकिन मंदिर निर्माण और कला में कोई अंतर नही हैं। 


बहुत से हिन्दू पुराणों तथा वेदों में भी जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी का उल्लेख हैं। वेदों में ऋषभदेव जी को वृषभ देव कहा गया हैं और इनका चिन्ह वृषभ अर्थात बेल ही हैं। दूसरी तरफ भगवान शंकर का चिन्ह भी वृषभ हैं और आदिनाथ भी कहा जाता हैं और ऋषभदेव भी देवादि देव आदिनाथ है। 

आज से कुछ वर्षों पूर्व 2013 तक जैन और हिन्दू धर्म अलग नही थे लेकिन कांग्रेस और राहुल गांधी ने जैन धर्म की मांग को मानते हुए इसे अलग सम्प्रदाय के रूप में स्वीकार कर दिया गया फिर भी जैन अपने आप को हिंदुस्तान की संस्कृति से जुड़े हैं ओर हिन्दुओ से अलग नही मानते। 

जिन लोगो को इन दोनों धर्म का ज्ञान नही वो लोग इसमे अंतर ढूंढने लग जाते हैं और यदि इन लोगो से पूछा जाए तो वो यही कहेंगे कि हमारा धर्म सबसे उत्तम ओर पुराना हैं और बाकी सभी धर्म हिन्दू धर्म से ही बने हैं लेकिन ऐसा बिल्कुल नही हैं। यदि जैन धर्म को मानने वालों से पूछा जाए तो वो अपने धर्म को ही सर्वश्रेष्ट बताएंगे लेकिन फिर भी जैन अपने धर्म को लेकर इतने कट्टरवादी नही हैं। जैन धर्म उदारता सिखाता है और सभी धर्म को आदर से देखता हैं। चूंकि ये अहिँसा के पुजारी है, हिंसक धर्मो से दूर रहना पसंद करते हैं। 

हिंदुस्तान की भूमि से बुद्ध धर्म का भी प्रचलन हुआ है जो बुद्ध के जन्म से ओर आज से करीब 2500 वर्ष पूर्व लेकिन जैन धर्म का कब ?? कोई नही जानता। कुछ लोग अल्पज्ञान की वजह से ये कह देते हैं कि भगवान महावीर ने ही जैन धर्म की शरुआत हुई हैं जो आज से लगभग 2600 वर्ष पूर्व हैं। 

जैन धर्म की उत्पत्ति कैसे हुई ? 
आज की किताबो में भी यही पढ़ाया जाता हैं कि जैन धर्म की शुरुआत भगवान ऋषभदेव से हुई थी लेकिन जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक महावीर को माना जाता हैं, लेकिन कैसे??

जब भगवान ऋषभदेव से जैन धर्म की स्थापना हुई तो उन्ही के सिद्धांतों पे चल कर महावीर भी आगे बढ़े और इसमें ओर नई बातो ओर सिद्धांतो को जोड़ा। चूंकि तीर्थंकर महावीर ओर उनके बाद के उनके शिष्यों ने जैन धर्म ओर महावीर के सिद्धांतो को लिखित किया और जन जन तक पहुचाया इसलिए आज लोग महावीर को ही जैन धर्म का जनक मानते हैं। 

जिन से जैन शब्द बना और जिन का अर्थ होता हैं जितने वाला मतलब जिसने तन, मन और वाणी को जीत लिया हो और जिसने इन्द्रियो को जीत लिया उसे जिनेन्द्र कहते हैं ओर जिन के अनुनायियों को जैन कहते हैं। अहिंसा जैन धर्म का एक मुख्य सिद्धांत हैं उसी पर जैन धर्म मे विशेष बल दिया गया हैं। 


जैन धर्म को यदि विस्तार से अध्यन किया जाए तो मालूम होगा कि ये हैं विज्ञान हैं और जीवन को निरोगी रह कर कैसे जिया जाए इससे समझा जा सकता हैं। वही दूसरी तरफ हिन्दू धर्म की भी अवधारणाएं पूर्ण रूप से वैज्ञानिक ही है। इसके हर रीति रिवाज, त्योहार आदि वैज्ञानिक आधार ही रखते हैं। 

हिन्दू धर्म तथा जैन धर्म को एक धर्म नही कह कर "जीवन जीने की पद्धति" कहा जाए तो बेहतर होगा। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 1992 के जजमेंट में ये बताया है कि Hinduism is not a religion it's a way of life. 

When we think of the Hindu religion, we find it difficult, if not impossible, to define Hindu religion or even adequately describe it. Unlike other religions in the world, the Hindu religion does not claim any one prophet, it does not worship any one god, it does not subscribe to any one dogma, it does not believe in any one philosophic concept, it does not follow any one set of religious rites or performances, in fact, it does not appear to satisfy the narrow traditional features of any religion or creed. It may broadly be described as a way of life and nothing more.

“जब हम हिंदू धर्म के बारे में सोचते हैं, तो हमें यह मुश्किल लगता है, यदि असंभव नहीं है, तो हिंदू धर्म को परिभाषित करना या पर्याप्त रूप से इसका वर्णन करना।  दुनिया के अन्य धर्मों के विपरीत, हिंदू धर्म किसी एक पैगंबर का दावा नहीं करता है, यह किसी एक भगवान की पूजा नहीं करता है, यह किसी एक हठधर्मिता की सदस्यता नहीं लेता है, यह किसी एक दार्शनिक अवधारणा में विश्वास नहीं करता है, यह किसी एक का पालन नहीं करता है  धार्मिक संस्कार या प्रदर्शन का सेट, वास्तव में, यह किसी भी धर्म या पंथ की संकीर्ण पारंपरिक विशेषताओं को संतुष्ट करने के लिए प्रकट नहीं होता हैमोटे तौर पर इसे जीवन के तरीके के रूप में वर्णित किया जा सकता है और इससे अधिक कुछ नहीं।

यदि जैन और हिन्दू धर्म मे अन्तर की चर्चा की जाए तो - 

1.  जैन धर्म श्रमण परम्परा का धर्म हैं और हिन्दू वैदिक परंपरा का धर्म हैं। 

2.  जैन धर्म आत्मा और पुर्नजन्म में तो विश्वास करता हैं लेकिन भगवान के अवतार की अवधारणा नही हैं जबकि हिन्दू धर्म चूंकि वैदिक परम्परा से हैं भगवान के अवतार की अवधारणा हैं जैसे विष्णु के 24 अवतार हुए वही जैन धर्म मे 24 तीर्थंकर हैं लेकिन वो अवतार नही हैं। 

3.   जैन धर्म अनीश्वरवादी हैं ओर ईश्वर के होने में विश्वास नही रखता ओर सृष्टि के निर्माण में उनका कोई योगदान नही हैं। सृष्टि स्वनिर्मित हैं और व्यक्ति के कर्मो से ही उसका फल निर्मित होता हैं। 

4.   हिन्दू धर्म एक वैदिक धर्म हैं और इसमें ब्राह्मणों के माध्यम से देवी देवताओं को प्रसन्न किया जाता हैं। ईश्वर के होने और अवतार की अवधारणा हैं ओर सृष्टि का निर्माण परम पिता ब्रह्मा ने किया हैं। 

5. हिन्दू और जैन धर्म दूसरे धर्मों की तरह किसी एक व्यक्ति, विश्वास और सिद्धांत को लेकर नही हैं अपितु यहां अनेको सम्प्रदाय हैं और उनका विश्वास भी अलग अलग हैं। जैसे कोई श्री राम को पूजा करे या कोई कृष्ण की या जैन में महावीर हो या ऋषभदेव। 

अन्य धर्मों की तरह बुद्ध, अल्लाह, यीशु में ही विश्वास करने तक सीमित नही हैं। 


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